NO ; SHE IS MINE

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Tuesday, December 24, 2013

PAIN OF ......

सुबह की शुरुवात  हमेशा की  तरह आज भी नहाने के बाद भगवान् की पूजा से की लेट न हो जाऊ , इस लिए जल्दी जल्दी में रविवार को अच्छे  से धोकर प्रेस की गयी कॉलेज की यूनिफार्म पहनी और निकल पढ़ा बस स्टॉप की तरफ जैसे ही बस आई सब उस अध रुकी बस की ऒर सब  एसे भागे जैसे कई दिनों से भूखे हो और एक निवाला उनके सामने आ गया हो , बस में सीट न मिलने  की सोच ही सब को डरा देती है कोई उस बस के गेट में बची हुई थोड़ी सी जगह में से अन्दर जाने की कोशिश करता तो कोई खिड़की मे  से बेग को अन्दर दाल कर सीट पर अपना हक़ पेश करता इस जदोजहद के बाद कॉलेज के लिए जाने वाले रास्ते पर एक बड़ा सा जाम दिखाई देता है कई मिनटों  का वो इंतज़ार , रोना तो नही आता पर से शरीर रो पढता है , फिर जैसे तैसे कॉलेज को जाने वाले पगडण्डी हाँ  पगडण्डी ही करोड़े  के टर्न ओवर वाले उस कॉलेज तक पहुचने के लिए गुजरना पढता था एक धूल पगडण्डी से और जब तक स्टूडेंट एक बड़े गढ्हे में से बस के निकलने के झटके से उभरते तब तक उनका स्वागत किया खिड़की से आने वाली उस धूल ने , फिर भी रोना नही आया पर रो पड़ी वो मेहनत जो कल यूनिफार्म को साफ़ करने के लिए की थी । फिर क्लास में पहुच कर थोडा संभलता तब तक टीचर ने दरवाजे पे दस्तक दे दी जैसे तैसे एक नए जोश को एकत्र करे 2 घंटे कटे की लंच हो गया , और भूक से तधप रहे उस पेट को आशा की एक नयी किरण दिखी हो , और कैंटीन जाकर 2 अधकचे समोसे जब गले से नीचे उतरे तो जैसे उस पेट की सांसे सी लोट आई हो क्लास मई नए लेक्चर की शुरुबात होती की उन अधकचे समोसे ने जबाब देना शुरू कर दिया था पानी पी पी कर ये लेक्चर कटा अब पानी पिया था तो लेक्चर ख़तम होते ही क्लास से बाहर टॉयलेट की तरफ भागने ही वाला था की , आगे से आवाज़ आई कहा चले अन्दर । ये थी मैडम जो क्लास लेने वाली थी अब इनसे कुछ बोल भी नही सकते की खा जा रहे थे आ कर बेठ गये सीट पर एक हिम्मत बाँध कर ।
अब लैब थी पर फिर से एक बार लैब की जगह लेक्चर लगा दिए गये अब हिमत नही बची थी लैब में जाने की तो लेक्चर गिरते पढ़ते काटे फिर 4 बजे तो छुटटी  हो गयी फिर सब बचे बसों की तरफ सीट मिल जाये की उम्मीद में  भागे , जब तक बस तक पंहुचा  सीट भर चुकी थी और अब बस में खड़े होने की भी जगह नही थी 4 बजे छुट्टी होने के बाद 5:30 पर बसे चला स्टार्ट हुए 6:30 पर घर पहुचे तो सर जैसे फट जायेगा जल्दी से कहना खाने गया पर अब तो जिसे निवाला तोड़ कर खाने तक की हिम्मत नही बची थी , प्लेट को साइड में हटा कर बिस्तर पर लेट गया पर नीद तो लगने का नाम ही नही ले रही थी फिर उठ कर एक टेबलेट ली और एक बार फिर कोशिश की सोने की पर कामयाबी न मिलने पर ४ घंटे उस असहनीय दर्द को सहा तब जा कर 11 बजे नीद लगी और जब सुबह 6 बजे नीद खुली तो पहली नगर दीवार पर तंगी उस कॉलेज यूनिफार्म पर पढ़ी तो सोचा की छोड़ देता हु ये सब पर जब ख्याल आया माँ बाप का तो नहाधोक कर यूनिफार्म पहिन कर फिर चल दिए स्टॉप की तरफ ........